खेती में टीशू कल्चर अपनाने की मिली सीख, महाराष्ट्र के जलगांव भ्रमण पर गये किसान बागवानी को लेकर हुए प्रोत्साहित
वापसी में खेतों में फसलों की स्प्रिंकलर से सिंचाई देखकर व्यक्त की प्रसन्नता
जनसंदेश न्यूज़
चांदमारी। जलगांव की यात्रा पर गये पूर्वांचल के किसानों ने टीशू कल्चर से सिर्फ केला ही नहीं मुसम्मबी, नींबू और अमरूद की बागवानी के गुर भी सीखे। महाराष्ट्र से पांच दिन का भ्रमण कर जब वापसी के लिए गुरुवार को वह महानगरी एक्सप्रेस ट्रेन पर सवार हुए तो रेल लाइन की पटरियों के किनारे खेतों में स्प्रिंकलर से हो रही सिंचाई देखकर उनकी उम्मीदों को और अधिक बल मिला।
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की ओर से वाराणसी मंडल के इन किसानों का दल जलगांव की यात्रा पूरी कर लौट रहे हैं। ट्रेन में सफर के दौरान टीम में शामिल किसान छविनाथ मौर्य ने टीशू कल्चर के महत्व पर चर्चा शुरु की। मोहन पटेल ने कहा, टिशू कल्चर क केला क खेती त करय लायक हव। नह्नकू यादव बोले, देखा भयवा, हमरे हिसाब से त हमहन बदे तरकरिये क खेती ठीक हव। जब चाहा तब बोआ आउर ले जाके तुरंतै बेच दा।
जौनपुर के जयप्रकाश यादव और संजय सिंह ने केले की खेती पर जोर दिया। चंदौली के जियुत यादव ने हामी भरी। ट्रेन जब इटारसी से आगे बढ़ी तो खेतों में स्प्रिंकलर के फौव्वारों दिखने लगे। इस पर राजनारायण बोले, अरे हऊ देक्खा, केतना बढ़िया फुहारा चलत हव। सभी किसान उत्सुकता से खिड़की के बाहर उन खेतों में गेहूं, गन्ना और सब्जी की हो रही सिंचाई निहारते रहे। जिधर देखो उधर स्प्रिंकलर ही स्प्रिंकलर की फुहार।
जयप्रकाश ने पूर्वांचल के किसानों की आम मानसिकता पर टिप्पणी की। कहा, हमहन के हीयां त पाइपवै से पानी छिड़कत बायन आउर फुहारा घरवै में रखले रहेलन। सहायक उद्यान निरीक्षक सुरेश मिश्रा ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि कहा कि देखा भाय, टपक बिधि से हो या फउव्वारा बिधि। दुन्नो बिधि में से एक ठे त अपनवै के होई। अनुदान क दुरुपयोग न करे के चाही। बातों-बातों में ट्रेन कटनी होकर मैहर पहुंची। किसानों ने जयकारा लगाया। वहीं धीरे-धीरे शाम उतर रही थी और ट्रेन के बाहर दिख रहे खेतों को अंधेरा अपनी काली चादर में छुपाता जा रहा था।