कम जमीन की खेती में कैसे बेहतर हों किसान, नहीं ऐसा कोई उपाय जिससे सरकारी नौकरी जितना मिले लाभ


जलगांव भ्रमण पर गये किसानों के दल ने जतायी चिंता


ड्रिप विधि से सींचे जा रहे खेतों को देखा, की बातचीत


अधिक क्षेत्रफल में खेती-बाड़ी वालों को ही ज्यादा लाभ

जनसंदेश न्यूज़
चांदमारी। किसान अपने गांव, क्षेत्र और जनपद से बाहर बेहतर खेती वाले जिन इलाकों की तरक्की देखने जाता है, वहां यही ढूंढता है कि बिस्वा दो बिस्वा और ज्यादा से ज्यादा बीघा में खेती करने से कम से कम इतना आय हो सके जिससे उनके बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समस्या न हो। अपने बच्चों को वह ऐसी सभी सुविधाएं और खुशियां दे सके जो एक नौकरी करने वाला कर सकता है। इसके लिए बेहतर तकनीकी और खेती की खोज के लिए देशभर के तमाम किसानों की यात्राएं जारी हैं। धुंध-सी दिखने वाली ऐसे युक्ति की उन्हें बेसब्री से तलाश है।
महाराष्टकृ के जलगांव की यात्रा पर गये वाराणसी मंडल के जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर और वाराणसी जनपद के किसानों का दल वहां स्प्रिंकलर और ड्रिप विधि से सिंचाई कार्य को देखकर भ्रमण के चौथे दिन बुधवार को यही चर्चा करते रहे। इस यात्रा में कई ऐसे किसान हैं जो बेहतर खेती के उद्देश्य से देश के विभिन्न प्रांतों की यात्रा कर चुके हैं। उसके बावजूद उनकी जिज्ञासा का अंत नहीं है। वह इस उम्मीद से अपनी यात्रा जारी रखे हुए हैं कि कोई ऐसी फसल या तकनीक मिले जिससे कम क्षेत्रफल में भी एक नौकरीपेशा के समकक्ष आमदनी हो और परिवार का बेहतर ढंग से भरण-पोषण कर सकें।
यह किसान जहां भी किसान गए, वहां की फसल एकड़ में की गयी थी। लाख रुपये की आमदनी समझायी गयी लेकिन वह आय एकड़ में खेती करने के बाद आती है। वाराणसी और आस-पास के जिलों में खेती की जमीनों का क्षेत्रफल तेजी से कम होता जा रहा है। यदि बनारस की ही बात करें तो दो-चार एकड़ वाले किसान खोजने के बाद ही मिलेंगे। ऐसी परिस्थिति में छोटे किसानों के साथ एकड़ में खेती करने की बात करना बेमानी है।
उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग की ओर से इन दिनों जलगांव भ्रमण पर गये किसान महाराष्टकृ की खेती-बाड़ी देखकर यूपी के पूर्वांचल में खेती की स्थिति को लेकर सोच में पड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि कृषि संबंधी यात्राओं से लाभ को बहुत मिलता है फिर भी ‘किसानी रू एक खोज’ जारी है। जौनपुर के नह्नकू यादव, संजय सिंह, घनश्याम मौर्य, जयप्रकाश यादव, चंदौली के जियुत यादव ने बताया कि वाराणसी में भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र, केवीके, पूना, नासिक, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंतनगर आदि की यात्रा करने के बाद कई स्तर पर अनुभव प्राप्त हुए हैं।
जलगांव गये किसानों के दल ने अपनी यात्रा के चौथे दिन ड्रिप विधि से सींचे जा रहे खेतों का भ्रमण किया। स्थानीय किसानों से बातचीत की। वहां मेड़ों पर लगाये गए बैंगन, नेनुआ, भिंडी, भुट्टा आदि फसलों की खेती की तकनीक सीखी। खास यह कि उन खेतों में सभी पौधे एक समान और बहुत स्वस्थ दिखे।
घट रही अहमियत
इन दिनों जलगांव भ्रमण पर चल रहे किसानों ने आपस में चर्चा करते हुए अपना-अपना दर्द बयां किया। बोले, पहले जब लड़कियों की शादी के लिए वर खोजते थे तो अच्छी-खासी खेती किसानी और अधिक जमीन वाले किसान परिवारों को प्राथमिकता दी जाती थी। लेकिन आज किसान अपनी बेटी के विवाह के लिए सरकारी नौकरी वाला वर ढूंढ़ रहे हैं, भले ही वर या उसका परिवार जमीन खरीद न सका हो। खेती-किसानी करने वालों की अहमियत घट रही है। खेती-बाड़ी ऐसी चाहिए जिससे ‘जय किसान’ का सम्मान वापस मिले।
मुफ्त भ्रमण के अवसर
जलगांव भ्रमण में किसानों का नेतृत्व कर रहे सहायक उद्यान निरीक्षक सुरेश मिश्र ने बताया कि उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग किसानों को नयी तकनीकों की जानकारी देता है। विभाग की ओर से खेती के उपकरणों पर अनुदान की व्यवस्था है। यूपी से बाहर किसानों को मुफ्त में भ्रमण कराते हुए बेहतर खेती देखने और समझने का अवसर किसानों को उपलब्ध करता है।


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