गहराया संकट: कोरोना’ से दहला बनारसी साड़ी उद्योग, दो सौ करोड़ के कारोबार और बुनकरों के रोजी-रोटी पर संकट


चाइना से रेशम न आने से बिनकारी प्रभावित होने के आसार


परोक्ष-अपरोक्ष रूप से जुड़े सात-आठ लाख लोगों सता रहीं चिंता

जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। काशी अपने ‘किमखाब’ यानी रेशमी वस्त्रों की बुनाई और सिल्क के कपड़ों के लिये विश्वविख्यात है। बनारसी साड़ियां सदैव से संभ्रान्त और कुलीन परिवार की पहली पसंद बनी हुई हैं। विवाह के शगुन के रूप में ये साड़ियां दुल्हन के लिये शुभ मानी जाती हैं। इन साड़ियों के लिये किसी ‘ब्रांड’ या पहचान की जरूरत नहीं हैं। इनकी मांग देश ही नहीं विदेशों में भी हमेशा ऊंची बनी रहती है। लेकिन इन दिनों बनारसी साड़ी उद्योग पर ‘कोरोना वायरस’ कहर बनकर टूट पड़ा है। चीन ही नहीं दुनिया के कई देशों में कोरोना वायरस फैलने के बाद से चीन से रेशम न आने से बनारसी साड़ी उद्योग पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। करीब एक लाख से अधिक बुनकरों और इस उद्योग से परोक्ष-अपरोक्ष रूप में जुड़े करीब सात लाख लोगों की रोजी-रोटी खतरे में हैं। यहीं कारण है कि कोरोना वायरस के चलते बनारसी साड़ी उद्योग दहल सा गया है। 
बनारसी साड़ी उद्योग से जुड़े राजन जायसवाल सिर्फ वाराणसी में ही हैंडलूम, सेमी हैंडलूम और पावर लूम को मिलाकर 80 हजार से अधिक संख्या है, जिसका बेसिक रॉ-मैटीरियल रेशम है। अधिकतर मैटीरियल चाइनीज रेशम के रूप में होता है, जिसे चीन से आयात किया जाता है। अब चाइनीज रेशम का अभाव होने लगा है। अकेले बनारस में ही लगभग नौ से 10 टन रेशम रोजाना खपत हो जाता है। चाइनीज रेशम पर लगी रोक नहीं हटती है तो आगे व्यापार प्रभावित होगा। 
उनका कहना है कि हर महीने करीब दो सौ करोड़ के कारोबार वाले बनारसी साड़ी उद्योग में रेशम के खपत की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी चीन की होती है। बाकी माल बंगलुरू, मालदा, उड़ीसा और अन्य शहरों से आता है। चीनी रेशम की क्?वॉलिटी अच्छी होने से साड़ी के ताने में इसका प्रयोग होता है, जबकि बाना देश के विभिन्न शहरों से आने वाले रेशम से तैयार होता है। ऐसे में चाइनीज रेशम की कमी का असर बनारसी साड़ी उद्योग पर पड़ सकता है। चीनी रेशम की उपलब्धता न होने पर अच्छी बनारसी साड़ियों की मांग पूरी नहीं हो पाएगी।
वाराणसी वस्त्र उद्योग संघ के सदस्य व बनारसी साड़ी कारोबारी विपिन मेहता का कहना है कि लगातार आर्डर कैंसिल होने से कारोबारियों में ही नहीं बुनकरों में भी निराशा का वातावरण हैं। वहीं हथकरघा कारखानों का हाल भी खस्ता है। चीनी रेशम के कारण विदेशी बायर्स में भय है कि कहीं रेशम से तैयार वस्त्र संक्रमित तो नहीं। ग्राहक नहीं आ रहे हैं। हालात जल्दी नहीं सुधरे तो स्थिति भयावह हो जाएगी। 
बनारसी साड़ी निर्माता व निर्यातक राहुल मेहता बताते हैं कि चीन में जनवरी मध्य में छुट्टियों के बीच कोरोना वायरस के संक्रमण से समूचा बाजार सहम गया है। इस बीच वियतनाम के रास्ते रेशम आया, जिसे दक्षिण भारत के कुछ कारोबारियों ने चीन का रेशम बताकर वाराणसी के उद्यमियों को थमा दिया। वितयनाम से आने वाले घटिया स्तर के रेशम के चलते आर्डर कैंसिल होने लगे और कारोबारियों व लूम संचालकों को दोहरी मार पड़ी है। साड़ी निर्माताओं व विक्रेताओं का कहना है कि यदि सरकार ने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो बनारसी साड़ी उद्योग का छाया संकट और गहरा जाएगा। 
बेमिसाल होती है हस्तनिर्मित बनारसी साड़ी
हस्तनिर्मित बनारसी साड़ियां बेमिसाल होती है। मशीनी युग में भी हथकरघा के प्रयोग से हाथ द्वारा कढ़ाई करके जो साड़ी तैयार की जाती है, उसकी मांग औद्योगिक परिवारों, राजघरानों, फिल्मी हस्तियों, राजनेताओं, व्यवसायियों और आजमन में बराबर बनी रहती है। इन साड़ियों को माहिर बुनकर भी बनाने में एक से तीन महीने तक का समय ले लेते हैं। सिल्क, कॉटन, बूटीदार, जंगला, जामदानी, जामावार, कटवर्क, सिफान, तनछुई, कोरांगजा, मसलिन, नीलांबरी, पीतांबरी, श्वेतांबरी और रक्तांबरी बनाई जाती हैं, जो यहां की पहचान हैं। 
बनारस में ये साड़ियां रामनगर, मदनपुरा, बजरडीहा, रेवड़ीतालाब, सोनारपुरा, शिवाला, पीलीकोठी, सरैया, छोहरा, आजाद पार्क, बड़ी बाजार, लोहता और आसपास के इलाकों के बुनकर बनाते हैं। इन इलाकों में यह धंधा पुश्तैनी चला आ रहा है। इन साड़ियों का व्यापार श्रीलंका, स्वीटजरलैंड, कनाडा, मारीशस, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, नेपाल समेत अन्य देशों तक फैला है। बनारसी साड़ी उद्योग का सालाना कारोबार करीब दो हजार करोड़ रुपये से अधिक का है। 


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