"जनसंदेश" सिर्फ अखबार नहीं, एक विचारधारा है

शोषितों की आवाज बनकर न्याय दिलाता है यह अखबार


समाज में सताए हुए लोगों की धड़कन बन चुके इस अखबार ने रचा है बड़ा इतिहास


लालफीताशाही और पुलिसिया जुल्म से लड़ने का माद्दा रखता है "जनसंदेश टाइम्स"



समाज का आईना


वाराणसी। जनसंदेश सिर्फ नाम नहीं। एक विचारधारा है। ऐसी धारा, जहां मिलता है मजलूमों को न्याय। मिलती है अत्याचार से मुक्ति। दरअसल, यह सिर्फ अखबार नहीं, शोषित समाज के लोगों की आवाज है।


नेपथ्य में जाएं तो पाएंगे कि पिछले एक बरस में ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने उन लोगों को अहमियत दी, जो समाज में सताए हुए थे।


नजीर के तौर पर सोनभद्र जनसंहार कांड को लें। अखबार ने उभ्भा के आदिवासियों को न्याय दिलाने में अहम भूमिका अदा की। दरिंदगी का खेल खेलने वाले जेल की सलाखों में पहुंचे तो सरकारी मशीनरी की नींद भी उड़ी। जनसंदेश ने इनके पेंच कसे तो तमाम अफसरों पर गाज गिरी। आदिवासियों को न्याय मिला। साथ ही  भारी-भरकम मुआवजा भी।


मीरजापुर के नमक-रोटी में जनसंदेश ने लंबी लड़ाई लड़ी। हमारे साथी को झूठे मामले में फंसाने का कुचक्र नाकाम हुआ। वो भी तब जब लालफीताशाही ने मामले को तूल देने के लिए हर हथकंडे अपनाए। इस जंग को जनसंदेश ने न सिर्फ फतह किया, बल्कि यह साबित कर दिया कि सच आखिर सच ही होता है। सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं।


झूला वनस्पति का झुनझुना


लोक निर्माण विभाग के नम्बर एक के ठेकेदार अवधेश श्रीवास्तव के आत्महत्या कांड को ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने प्रमुखता से उठाया। खोजी रिपोर्ट के आधार पर सर्वप्रथम प्रकाशित किया कि ठेकेदार ने आत्महत्या की है या फिर उनकी हत्या की गयी है? जांच टीम ने भी इसे काफी हद तक सत्य माना था। इस समाचार पत्र में अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया था कि लोक निर्माण विभाग में भ्रष्टाचार चरमसीमा पर है। बगैर सुविधा शुल्क के यहां कोई काम नहीं होता। अफसरों का न तबादला होता है, न मुकदमा दर्ज होने पर जेल। जनसंदेश की पहल पर शासन को पांच अभियंताओं को निलंबित करना पड़ा और कुछ जेल भी गए।


कैंट प्रधान डाकघर में हुए करोड़ों के घोटाले की रिपोर्ट भी ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने सबसे पहले ब्रेक की। इस समाचार पत्र में सबसे पहले यह भी बताया कि इस घोटाले का मास्टरमाइंड कोई और नहीं, बल्कि डाकघर में अधिकारी की तरह बैठने वाला एजेंट है, जिसे लोग ‘पीके’ के नाम से जानते हैं। इस घोटाले में डाकघर के कर्मचारी भी शामिल थे। खबर का ही असर रहा कि पुलिस ने कई घोटालेबाजों को गिरफ्तार कर जेल भेजा। इस घोटाले का सबसे दर्दनाक पहलू यह रहा कि जीवन भर की कमाई डूब जाने से कई परिवारों में बेटे-बेटियों के हाथ पीले नहीं हो पाएं।


वर्ष 2019 के पहले माह जनवरी में प्रवासी सम्मेलन की तैयारियों की रिपोर्ट के दौरान ‘जनसंदेश टाइम्स’ ने इस बात का खुलासा किया था कि जिस गांव में यह सम्मेलन हो रहा है, वहां के दर्जनों लोग बिजली की रोशनी से वंचित है। ये लोग एक निजी जेनरेटर के सहारे सिर्फ और सिर्फ पानी की उपलब्धता कर पाते थे। यह हालात तब था जब सरकार सौभाग्य योजना के तहत घर-घर बिजली पहुंचाने की मुहिम चला रही थी। खबर का असर हुआ और वहां के लोगों को वहां के लोगों के घरों में बिजली का करंट दौड़ा और लोगों के चेहरे पर खुशी दौड़ी।


झुनझुनवाला कांड अब भी लोगों को याद है। जनसंदेश की खबरों को सच पाकर सीबीआई ने छापा मारा। आरोपितों के सारे अभिलेख जब्त कर लिए गए।


‘जनसंदेश टाइम्स’ ने जन सरोकार से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और उसे अंजाम तक पहुंचाया। बात चाहे बिजली उपभोक्ताओं की समस्या से जुड़ी हो या फिर शुद्ध पेयजल, खराब सड़क, गदंगी, स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती-किसानी, शौचालय, आवास आदि की रही हो। जनता से जुड़ी समस्याओं को मुखर होकर उठाने में ‘जनसंदेश टाइम्स’ का कोई सानी नहीं रहा है। इस समाचार पत्र से जुड़े रिपोर्टर हो या फिर छायाकर, अपनी जान की बाजी लगाकर जनता की आवाज को प्रमुखता से उठाने से पीछे नहीं रहते। यहीं कारण है कि महज आठ साल के अल्प समय में ही ‘जनसंदेश टाइम्स’ जन-जन के बीच लोकप्रिय हो चुका है।


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