गुरू स्वामी श्री योगी सत्यम् ने कल्पवासियों को कराया क्रियायोग का अभ्यास, बोले, वैदिक काल का......



जनसंदेश न्यूज़
प्रयागराज। शुक्रवार को माघ मेला में पावन गंगा के तट, मोरी रोड पर सेवारत क्रियायोग शिविर में गुरुजी स्वामी श्री योगी सत्यम् द्वारा देश - विदेश से पधारे कल्पवासियों एवं श्रद्धालुओं को क्रियायोग अभ्यास कराते हुए यज्ञ व क्रियायोग के विषय में स्पष्ट किया कि वैदिक काल में जिसे यज्ञ कहते थे वर्तमान काल में उसे क्रियायोग कहते हैं। ज्ञानवतार स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरी जी द्वारा रचित आधुनिक श्रेष्ठतम् सद्ग्रंथ कैवल्य दर्शनम् (होली साइंस) में इस प्रकार स्पष्ट किया कि:- 
      तपःस्वाध्यायब्रह्मनिधानानि यज्ञः।।
प्राचीन काल में पावन पवित्र यज्ञ साधना की गलत व्याख्या कर इसे पशुबलि, नरबलि का रूप दिया गया तथा ब्रह्म के स्थान पर बरम-भूत-पिशाच् समझाया गया। आध्यात्म विज्ञान की पवित्रता को पुनः प्रकाशित करने के लिये महावतार बाबाजी ने यज्ञ के स्थान पर क्रियायोग तथा ब्रह्म के स्थान पर ईश्वर नाम देकर यज्ञ को स्पष्ट किया कि प्रचीन काल का यज्ञ ही क्रियायोग है। 
      तपः स्वाध्यायईश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।।
ऐसा तप जिसके अभ्यास से स्वयं की अनुभूति हो और स्वयं की अनुभूति ही ब्रह्म की अनुभूति हो, उसे क्रियायोग कहते हैं। स्वामी जी ने आगे समझाया कि आधुनिक विज्ञान ने स्पष्ट कर दिया है कि क्रियायोग के अभ्यास से मनुष्य के सभी प्रकार के क्लेश हमेशा के लिये दूर हो जाते हैं। 
योग और क्रियायोग के बारे में विस्तार से समाझाते हुए स्पष्ट किया कि मानव जीवन का लक्ष्य योग की अनुभूति है। योग की अनुभूति को ही सर्वव्यापकता की अनुभूति कहते हैं।     
इस अनुभूति में समय व दूरी की अनुभूति नहीं होती। क्रियायोग विज्ञान स्पष्ट करता है कि सामान्य रूप से योग की अवस्था को प्राप्त करने के लिये 10 लाख वर्ष व्याधिरहित समय की आवश्यकता होती है। 50 मिनट क्रियायोग के अभ्यास से 100 वर्ष का समय प्राप्त होता है। इस प्रकार लगभग 33 वर्ष में हम 10 लाख वर्ष के समय को उपलब्ध कर लेते हैं। अर्थात् 33 वर्ष में मनुष्य अनुभव कर लेता है कि वह सर्वव्यापी अस्तित्व है व यही मानव जीवन का लक्ष्य है।


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