पिता बदहवास, मां के नहीं थम रहे आंसू

लंका पुलिस की निष्ठुरता से शर्मसार हो रही इंसानियत



रवि सिंह


वाराणसी। इकलौता बेटा गायब है। खबर सुसाइड की है। मगर न लाश मिली, न गंगा में कूदने का सुराग लगा। विश्वनाथ बदहवास हैं। पत्नी ऊषा की आंखों के आंसू नहीं सूख रहे हैं। बेटे के दोस्त संजय को अपने साथ लेकर गए थे। शाम को एक मोबाइल फोन ने इनकी जिंदगी उजाड़ दी। घर में कोहराम मच गया। रपट अपहरण की दर्ज हुई है। लंका पुलिस है कि वो कुछ भी सुनने को राजी ही नहीं।  बेटे के लिए पागल हो रहे पति-पत्नी के पास अगर कुछ है तो सिर्फ आंसू। गुहार लगाने की एक सीमा होती है। पति-पत्नी थक गए हैं। न पुलिस अफसर सुन रहे, न प्रशासन।


घटना तीन दिसंबर की है। खोजवां के सरायनंदन के विश्वनाथ यादव और इनकी पत्नी ऊषा की अब दुनिया ही उजड़ गई है। इनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा। जवान बेटे के लापता होने की घटना ने उन्हें अंदर से इतना तोड़ दिया है कि पति-पत्नी बस बुत भर बनकर रह गए हैं। कही विश्वनाथ की आंखों से आंसू छलक जाते हैं, तो कभी ऊषा के। इंसानियत शर्मसार हो रही है, लेकिन लंका पुलिस है कि उस पर कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा। गुहार लगाने पर पुलिस वाले हंसते हैं। कहते हैं कि अपने बेटे को गंगा मइया से मांग लो। पति-पत्नी थाने पर दस्तक देते हैं। और हर रोज मिलता है टका सा जवाब। यह दर्दनाक पटकथा रोज लिखी जाती है। रोने-विलखने की पटकथा। पिघलती आंखों से आंसुओं का सैलाब निकलने की पटकथा।


विश्वनाथ और ऊषा ने बेहद लाड़-प्यार से पाल रखा था संजय को। इकलौता बेटा था। इंटर पास करने के बाद डिजाइनर बन गया। जिन दोस्तों पर उसे भरोसा था, उन्हीं ने उसे दगा दिया। खेल खेला। अपने साथ ले गए। घर में कैद रखा और फिर गायब कर दिया। कहानी गढ़ दी गई सुसाइड की। गंगा नदी में कूदने की। ऊषा कहती हैं कि घर में कोई विवाद ही नहीं था। फिर उनका बेटा जान क्यों देगा? इस सवाल का जवाब लंका पुलिस के पास नहीं है। पुलिस की भूमिका तो तभी से संदिग्ध है जब से उनका बेटा गयाब है। तीन हफ्ते तक रोजाना दौड़ाने के बाद भी रपट दर्ज नहीं की गई। लिखी भी तब गई जब एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने इनका दुखड़ा सुना। रपट लिखकर पुलिस वालों ने जांच फाइलों में दफन कर दी।



हैरत की बात यह है कि संजय को गायब करने का इल्जाम उसके चार दोस्तों पर है। इनमें दो लड़के हैं और दो लड़कियां। ये सभी दोस्त अरसे से उसके घर आते-जाते थे। कुछ इसके साथ पढ़ते थे और कुछ साथ-साथ घूमते थे। संजय के लापता होने की मिस्ट्री किसी अबूझ पहेली से कम नहीं है। दोस्तों पर सवाल खड़ा होना इसलिए लाजमी है कि आखिरी समय वो उन्हीं के साथ देखा गया था जिन पर विश्वनाथ यादव ने अपहरण का इल्जाम लगाया है। लंका पुलिस का हाल ये है कि अभियुक्तों से अब तक पूछताछ तक नहीं कर सकी है।


पूरी कहानी जानिए। खोजवां सरायनंदन निवासी विश्वनाथ सिंह यादव के एकलौते बेटे संजय से सुबह दस बजे घर उसके चार दोस्त मृणाल, प्रदीप शुक्ला, मेधा और निहारिका आए। लगभग आधे घंटे अलग कमरे में सभी की बातचीत हुई इसके बाद चारों दोस्त वापस लौट गए। उसी दिन शाम चार बजे संजय के मोबाइल पर उसके दोस्तों का संदेश और फोन आया। उसे मिलने के लिए बुलाया गया। इस बीच शाम सात बजे इन्ही दोस्तों ने संजय के विश्वसुंदरी पुल से छलांग लगाकर आत्महत्या करने की सूचना पिता विश्वनाथ को दी। सूचना पर संजय का पूरा परिवार दौड़े भागे उक्त स्थान पर पहुंचा जहां से उसने छलांग लगाई थी।



घटना के बाद खोजबीन शुरु हुई विश्वसुंदरी पुल से बलुआ घाट तक खोजबीन शुरू हुई, लेकिन कुछ पता नहीं चला। घटना के आठ दिन तक बदहवास मां- बाप गंगा में खुद के पैसे से बेटे के खोजबीन जारी रखी, पर सुराग नहीं मिला। परिजनों ने दोस्तों से पूछताछ की। संतोषजनक जवाब नहीं मिला। तब शक हुआ। यकीन ही नहीं हुआ कि उनके बेटे ने आत्महत्या नहीं है। अगर गंगा में कूदा है तो आठ दिन बाद भी शव क्यों नहीं बरामद हो सका? प्रतीत हो रहा है कि संजय का अपहरण हुआ है। उसके दोस्तों की कहानी में गजब का झोल है। पुलिस है कि वो कुछ सुनती  नहीं। महीने भर से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी लंका पुलिस खामोश है।


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