मिस्ट्री बन गई होनहार प्रीति की मौत, जानिए कौन थी ये खूबसूरत युवती?
आसाराम आश्रम के पास वरुणा में नग्न हालत में बेसुध मिली थी युवती
उलझी गुत्थी
० प्रीति के बदन पर मौजूद थे गहने, लेकिन गायब थे कपड़े, जिसे नहीं ढूंढ पाई पुलिस
०बीस रोज पहले बेटी को दिया था जन्म, परिजनों ने धूमधाम से मनाई थी बरही
इरफान हाशमी
वाराणसी। मौत एक सच है, लेकिन असमय मौत कई सवाल खड़े करती है। यही मौत जब रहस्य बन जाए, तो मुसीबत बन जाती है। कुछ ऐसा ही औसानपुर की प्रीति (22) के साथ हुआ। इस युवती की मौत के रहस्य से पर्दा नहीं उठ पाया है। मौत से कुछ रोज पहले ही प्रीति ने एक बेटी को जन्म दिया, जिसे अभी तक नाम भी नहीं मिल पाया और दरिंदों ने बहशी तरीके से मौत के मुंह में ढकेल दिया।
प्रीति की मायका लोहता इलाके के सरहरी गांव में है। वो बी.काम की छात्रा भी है। करीब डेढ़ बरस पहले औसानपुर के राहुल मौर्य से हुई थी उसकी शादी। मायके से ज्यादा दुलार मिला था ससुराल में। पिछले महीने की 21 तारीख को उसने बेटी को जन्म दिया तो समूचा घर खुशियों से झूम उठा। बरही इतनी धूमधाम से मनी कि लोग देखते रह गए। बड़ी पार्टी आयोजित की गई। प्रीति खूबसूरत तो थी ही, मिलनसार भी थी।
खान-पकवान से लेकर खेती-किसानी में भी दक्ष थी। अपनी पढ़ाई और करियर को लेकर प्रीति काफी फिक्रमंद रहती थी। बी.काम की छात्रा थी और वो बैंकिंग की तैयारी करना चाहती थी। उसे ससुराल वाले भी मदद कर रहे थे। हौसला दे रहे थे। पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। कोई कमी नहीं थी, लेकिन कुछ ऐसा जरूर हुआ था जिसके चलते वो पौने दो किमी दूर वरुणा नदी तक पहुंच गई। किसी को भनक तक नहीं लगी। पड़ताल से पता चलता हैै कि प्रीति के घर वालों से दुर्गापूजा के समय कुछ लोगों से विवाद हुआ था। वारदात से कुुुछ रोज पहले गांव के ही मनबढ़ युवकोंं ने प्रीति के घर पर पहुंचकर धमकी दी थी कि अभी तुुम लोग बरही का जश्न मना लो, चार दिन बाद खूब रोओगे। ठीक चार दिन बाद अनहोनी हुई और प्रीति मौत के गाल में समा गई।
बीते 4 जनवरी को तड़के अनौरा गांव के पास नदी में प्रीति कराहती हुई मिली। पूरी तरह अचेत और नग्न। दोनों हाथ बंधे थे। बड़ागांव पुलिस ने शिवपुर बाइपास स्थित नोवा हास्पिटल में भर्ती कराया। कुछ दिन इलाज चला, लेकिन वो जिंदगी की बाजी हार गई। मौत से लड़ने के बाद बीएचयू हास्पिटल ले जाते वक्त बीते सोमवार को उसकी मौत हो गई।
औसानपुर से करीब पौने दो किमी दूर आशाराम के आश्रम के पास वरुणा नदी में तड़के छह बजे बेहोशी की हालत में पाई गई थी प्रीति। बदन पर कपड़े नहीं थे, लेकिन गले में सोने की चेन (सिकड़ी) और पैरों में पाजेब मौजूद थे। गायब थे तो सिर्फ कपड़े। जिसे पुलिस आज तक बरामद नहीं कर सकी है।
प्रीति जो मोबाइल इस्तेमाल करती थी उसे ससुराल वाले बड़ागांव थाना पुलिस के हवाले किया जा चुका है। बड़ा सवाल यह है कि आशाराम बाबू के आश्रम के पास वरुणा नदी में प्रीति पहुंची कैसे? घर से वहां की दूरी पौन किमी है। प्रसव के बाद आमतौर पर महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलतीं, लेकिन प्रीति का गायब होना किसी रहस्य से कम नहीं है।
प्रीती काफी खूबसूरत और व्यवहार कुशल महिला थी। युवती की मौत ने कई अहम सवाल खड़े किए हैं, जिसका जवाब अभी बड़ागांव थाना पुलिस नहीं ढूंढ पाई है। इस होनहार लड़की की मौत आज भी मिस्ट्री है और बड़ागांव थाना पुलिस खामोश है।
लाश को चूहों और नेवलों ने भी नोचा
वाराणसी। दुर्योग देखिए। पंचनामा लंका पुलिस ने भरा। लाश पोस्टमार्टम हाउस में भी गई। लेकिन पोस्टमार्टम करने में स्वास्थ्य महकमे ने खूब अड़ंगे डाले। काफी जद्दोजहद के बाद तीसरे दिन शाम को हो सका उसका पोस्टमार्टम। इस बीच मोर्चरी में रखी उसकी लाश को चूहों और नेवलों ने भी नोचा।
विवाहिता के ससुर शंभू मौर्य ने बताया कि 13 जनवरी को बीएचयू ले जाते समय रास्ते में ही बहू ने दम तोड़ दिया था। तब तत्काल लंका पुलिस को सूचना दी, तो पंचनामा के बाद लाश मोर्चरी में रखवा दी। उस दिन पोस्टमार्टम नहीं हुआ। 14 जनवरी को दिनभर भागदौड़ के बाद पोस्टमार्टम का नंबर आया तो बताया गया कि सीएमओ का दस्तखत चाहिए। सीएमओ का आर्डर पहुंचा तभी वाराणसी जिला जेल से एक कैदी की लाश पहुंच गई। कैदी का पोस्टमार्टम हुआ और प्रीति की लाश चूहों और नेवलों को कुतरने के लिए छोड़ दी गई।
बड़ागांव के इंस्पेक्टर संजय सिंह ने बताया कि 13 जनवरी कागजी कार्रवाई करते-करते शाम हो गई। 14 जनवरी को मजिस्ट्रेट नहीं पहुंचे। जब मजिस्ट्रेट पहुंचे तो महिला डाक्टर की तलाश शुरू हुई। मामला फिर लटक गया। 15 जनवरी को पोस्टमार्टम की बारी आई तो वीडियोग्राफर की तलाश शुरू हुई। काफी हीला-हवाली के बाद 15 जनवरी को अपराहन तीन बजे पोस्टमार्टम शुरू हुआ। रात करीब आठ बजे विवाहिता के पति राहुल मौर्य ने हरिश्चंद्र घाट पर मुखाग्नि दी तब जल सकी प्रीति की लाश।
बेटी को नाम भी नहीं दे सकी अभागी मां
वाराणसी। प्रीति की दुधमुंही बेटी अपनी मां का आंचल ढूंढ रही है। जब-तब वह रोने लगती है। तब ढांढस बंधाते हैं पिता राहुल। ढांढस बंधाने में उनकी आंखें भी छलछला जाती हैं। तब संबल देते हैं उनके परिजन। इस अभागी बच्ची को अभी तक नाम भी नहीं मिल पाया। वो ठीक से आंखें भी नहीं खोल पाई कि उसकी मां की ममता का छाया सिर से उठ गया। फिलहाल पिता राहुल और उसके परिजन बच्ची की परवरिश कर रहे हैं।