छुट्टा पशु रौंद रहे किसानों के अरमान, खेती छोड़ रहे अन्नदाता
- खेत-खलिहानों से मोड़ा मुंह, मजदूरी करने और पान की दुकान लगाने को हुए बाध्य
- चिरईगांव ब्लाक के तमाम किसानों ने आवारा पशुओं के डर से परती छोड़ दी जमीन
जनसंदेश न्यूज
चिरईगांव। खेत और खलिहान में ही अन्नदाताओं के भविष्य की दुनिया संवरती है। ऊसर, बंजर जमीन को अपने खून-पसीने से उपजाऊ बनाने के बाद किसान खेतों में बीज डालता है। बीज के अंकुरण के साथ ही किसानों के सपने सजने लगते हैं कि फसल तैयार हुई तो बीमार मां का इलाज अच्छे अस्पताल में कराएंगे। बेटी के हाथ पीले करेंगे आदि-आदि। लेकिन अन्नदाताओं के इन ख्वाबों को छुट्टा पशुओं ने रौंदने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जिससे किसानों के सपनों को ग्रहण लग रहा है। आवारा पशुओं से परेशान कई किसान खेती छोड़कर दूसरे छोटे-मोटे काम-धंधे को अपनाना शुरु कर दिया है।
खेतों में बीज अंकुरित होते ही छुट्टा पशुओं के झुंड फसलों को चट कर जा रहे हैं। चिरईगांव ब्लाक क्षेत्र के तमाम किसानों ने इन आवारा पशुओं के आतंक से तंग आकर खेती के बजाय मोटा काम कर जीवन-बसर के लिए बाध्य हुए हैं। उकथी गांव के सहेंद्र बटाई की खेती करते थे। अब वह मजदूरी कर रहे हैं। भदवां के किसान बीकानु सरोज पान की दुकान लगा रहे हैं। नई बस्ती निवासी बीकन राम ने खेती छोड़ दी। अब वह ट्रैक्टर चलाकर किसी प्रकार अपने परिवार को पेट पालने के लिए बाध्य हैं।
किसानों छोड़ चुके इन लोगों का कहना है कि छुट्टा पशुओं के कारण खेती-बाड़ी करना घाटे का सौदा साबित हो रहा है। वहीं, कई किसानों ने आवारा पशुओं से आजिज आकर अपने-अपने खेतों को परती छोड़ दिया है। उनमें नरायनपुर के महेंद्र यादव ने दो बीघा, उमरहा निवासी नखड़ू पाल ने एक बीघा, तोफापुर के श्यामजी यादव ने दो बीघा और जाल्हूपुर निवासी मंगला यादव ने दो बीघा जमीन को पतरी छोड़ा है।
इन किसानों के अलावा तमाम ऐसे अन्नदाता हैं जिन्होंने बीते नवंबर माह में अपने खेतों में गेहूं बोया। उसका अंकुरण होते ही छुट्टा पशुओं ने धावा बोला और अंकुरित बीज चट कर गये। यह किसान अब दोबारा बोआई करने के लिए बाध्य हो रहे हैं। दूसरी ओर, शाक-भाजी पैदा करने वाले किसान भी आवारा पशुओं से सहमे हुए हैं। खेतों में भंटा, गोभी, साग आदि की चल रही निगरानी नाकाफी साबित हो रही है। क्योंकि इस कड़ाके की ठंड में अर्द्धरात्रि से पहले तक ही किसान खेतों पर पहरा दे पा रहे हैं। उनके घर लौटते ही आधी रात के बाद आवारा पशुओं का झुड़ चुपके से उन खेतों पर पहुंच कर फसल को नष्ट कर रहे हैं। ऐसे में फसलों को छुट्टा पशुओं से सुरक्षित रख पाना बेहद मुश्किल हो चुका है।
-छुट्टा पशुओं पर शासन गंभीर
- जिला कृषि अधिकारी सुभाष मौर्य आवारा पशुओं के संकट को स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि चिरईगांव ब्लाक में 26 हजार 476 पंजीकृत किसान हैं। इन किसानों के लिए खेती में छुट्टा पशुएं बाधा बन रही हैं। इस समस्या को लेकर शासन गंभीर है। जब सिवानों में चारों ओर फसलें होंगी तो आवारा पशुएं नुकसान पहुंचा सकती हैं। छुट्टा पशुओं की धर-पकड़ कर उन्हें पशु आश्रय केंद्रों पर रखने की पहल हुई है। उम्मीद है कि फसल को बचाने के लिए धीरे-धीरे आवारा पशुओं की समस्या खत्म हो जाएगी।
हो रही है पहल
- पशु चिकित्साधिकारी डॉ. सीबी सिंह ने बताया कि जनपद में 50 से अधिक पशु आश्रय केंद्र बनवाने का लक्ष्य है। ऐसे कई स्थायी-अस्थायी केंद्र शुरु हो चुके हैं और तमाम केंद्र निर्माणाधीन हैं। वर्तमान में करीब आठ हजार छुट्टा पशुओं के संरक्षण के लिए 19 पशु आश्रय स्थल स्थापित हैं। मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना में स्थाई पशु आश्रय केंद्रों से 346 पशुओं को गोद भी दिया गया है।