भारत में क्यों है मकर संक्रांति का विशेष महत्व, जानिएं......


काशी के घाटों पर दिखीं श्रध्दालुओं की भारी भीड़



जनसंदेश न्यूज 
वाराणसी। हिन्दू धर्म में मकर संक्रान्ति पर्व का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इस पर्व को मकर संक्रांन्ति के रूप में जाना जाता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांन्ति, गुजरात में उत्तरायण, पंजाब में लोहडी पर्व, उतराखंड में उतरायणी, केरल में पोंगल, गढवाल में खिचडी के नाम से जाना जाने वाले पर्व की महत्ता पुराणों में भी मिलती है।
इस शुभ दिन को काशी सहित हरिद्वार, इलाहाबाद आदि तीर्थों पर स्नानादि का विशेष महत्व है। शास्त्रीय सिद्धांतानुसार सूर्य पूजा करते समय श्वेतार्क तथा रक्त रंग के पुष्पों का विशेष महत्व है। इस दिन सूर्य की पूजा करने के साथ-साथ सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।  
पर्व के साथ जुड़े है अनेक पौराणिक तथ्य
# makarsankranti (मकर संक्रान्ति) के साथ अनेक पौराणिक तथ्य जुड़े हुए हैं। जिसमें यह माना जाता है कि देवताओं के दिनों की गणना इस दिन से ही प्रारम्भ होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्री व उतरायण के 6 माह को दिन कहा जाता है। वहीं यह भी मान्यता है कि भगवान आशुतोष ने इस दिन भगवान विष्णु जी को आत्मज्ञान का दान दिया था तथा महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का दिन ही चुना था।
इस दिन दान करने का है विशेष महत्व
मकर संक्रान्ति के दिन दान करने का महत्व अन्य दिनों की तुलना में बढ जाता है। इस दिन व्यक्ति को यथासंभव किसी गरीब को अन्नदान, तिल व गुड का दान करना चाहिए। तिल या फिर तिल से बने लड्डू या फिर तिल के अन्य खाद्ध पदार्थ भी दान करना शुभ रहता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार कोई भी धर्म कार्य तभी फल देता है, जब वह पूर्ण आस्था व विश्वास के साथ किया जाता है। जितना सहजता से दान कर सकते हैं, उतना दान अवश्य करना चाहिए। 
श्रध्दालुओं ने लगाई श्रध्दा की डुबकी
मकर संक्रांति के पर्व पर काशी के घाटों पर श्रध्दालुओं की भारी भीड़ देखी गई। जहां विभिन्न प्रांतों से आएं भक्तजनों ने मां गंगा की धारा में डुबकी लगाकर परिवार के सुख-समृध्दि की कामना की। इस दौरान श्रध्दालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए घाटों पर एनडीआरएफ व पुलिस के जवान तैनात रहे। वहीं दूसरी तरफ बनारस के लोगों ने हर्षोउल्लास के साथ पर्व मनाते हुए बनारस की ऐतिहासिक परंपरानुसार दान भी दिया। वहीं युवाओं ने जमकर पतंगबाजी भी किया।


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