असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए हिन्दी भाषी अभ्यर्थियों को इंटरव्यू देने से रोका
कुलपति ने हिंदी भाषियों को तीन से चार मिनट में साक्षात्कार कक्ष से बाहर निकाल दिया
बीएचयू प्रशासन ने दी सफाई-इंटरव्यू में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं हुआः पीआरओ
जनसंदेश न्यूज
वाराणसी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शुक्रवार को साक्षात्कार के दौरान हिंदी भाषी प्रतिभागियों ने भेदभाव का आरोप लगाया। अभ्यर्थियों ने सीधे बीएचयू के कुलपति पर भेदभावपूर्ण व्यवहार का आरोप लगाते हुए कहा कि हिन्दी भाषी अभ्यर्थियों का इंटरव्यू भी अधिकतम तीन से चार मिनट ही चला। साक्षात्कार प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि कुलपति मौलिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं। हिन्दी भाषियों के साथ भेदभाव मानवाधिकार का हनन है।
शुक्रवार को होलकर भवन में प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति व पुरातत्व विभाग में सहायक प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार चल रहा था। आरोप है कि कुलपति ने अधिकांश अभ्यर्थियों को हिन्दी भाषा में साक्षात्कार देने से न सिर्फ रोक दिया, बल्कि यह भी कहा कि हमें विदेशों से शिक्षक बुलाने का अधिकार है। अभ्यर्थियों का कहना था कि कुलपति ने हिंदी भाषी अभ्यर्थियों को अधिकतम तीन से चार मिनट में साक्षात्कार कक्ष से बाहर निकाल दिया। कुलपति के इस व्यवहार से हिंदी भाषी अभ्यर्थियों में न सिर्फ गुस्सा है, बल्कि वह स्वयं को अपमानित महसूस कर रहे हैं। अभ्यर्थियों का आरोप है कि कुलपति ने उनको हिंदी भाषा में साक्षात्कार देने से रोक दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा में साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं है। बता दें कि कला संकाय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में लगभग 95 फीसदी छात्र हिंदी भाषी हैं।
अभ्यर्थी डॉ. कर्ण कुमार ने बताया कि उन्होंने कुलपति से इस पर आपित्त दर्ज कराई। बावजूद इसके कुलपति ने सिर्फ अंग्रेजी में साक्षात्कार का दबाव बनाया बल्कि मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया।अभ्यर्थियों के मुताबिक कुलपति ने कहा कि इंस्टीट्यूट आफ इमिनेन्स के तहत भारत सरकार ने बीएचयू को 10 सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं में शामिल किया है। इसके तहत एक हजार करोड़ का अनुदान मिलेगा। हमें यह भी अधिकार है कि हम विदेशों से शिक्षक बुला सकते हैं। इसलिए हमें हिन्दी भाषा में साक्षात्कार की आवश्यकता नहीं है।
बतादें कि कला संकाय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग में लगभग 95 फीसदी छात्र हिन्दी भाषी हैं। अभ्यर्थी डॉ. कर्ण कुमार ने कुलपति के समक्ष आपत्ति जताई और छात्रों के भाषाई ज्ञान व अध्ययन के संबंध में मुद्दा उठाया। कर्ण कुमार ने बताया कि इसके बाद कुलपति ने कहा कि बच्चे अंग्रेजी भाषा के रिमेडियल क्लास या प्राइवेट ट्यूशन लें। उन्होंने कहा कि जब हम जर्मनी गये थे तो हमें भी जर्मन भाषा सीखने के लिए ट्यूटर रखना पड़ा।
डॉ. कर्ण कुमार ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 अभिव्यक्ति की आजादी के तहत यह अधिकार देता है कि वो किसी भी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत कर सकते हैं। इतना ही नहीं यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट के आर्टिकल-2 में स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी व्यक्ति को भाषा, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता है। इस संदर्भ में जनसंपर्क अधिकारी डॉ. राजेश सिंह ने बताया कि बीएचयू के अभ्यर्थियों को अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं का ज्ञान होना जरूरी है। साक्षात्कार के दौरान अभ्यर्थियों के आरोप के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि इंटरव्यू में किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं हुआ है।