परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद के शहादत दिवस पर कोरोना की काली साया, ना कोई तैयारी ना ही रौनक, दुश्मन देश सात टैंक.....

पलक झपकते ही दुश्मन देश के सात पैटर्न टैंकों को किया था ध्वस्त


दुश्मन देश के दांत खट्टे करने वाले अब्दुल हमीद के शहादत दिवस पर होता था भव्य आयोजन

जनसंदेश न्यूज़
दुल्लहपुर/गाजीपुर। 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के पासा पलटने वाले परमवीर चक्र विजेता शहीद वीर अब्दुल हमीद की शहादत दिवस हर वर्ष 10 सितंबर को उत्साह के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना के दंश के कारण शहीद के परिजनों में ना ही कोई उत्साह है ना ही कोई अधिकारियों के आने की खबर है। जबकि पिछले शहादतों में तमाम राजनैतिक हस्तियां, फिल्मी दुनिया के निर्देशकों सहित सेना के पूर्व जनरल विपिन रावत तक शिरकत कर चुके है। 
शहादत दिवस पर तमाम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता था। इसमें क्षेत्रीय जनता खूब उत्साह होता था। शहादत दिवस से 15 दिन पूर्व से प्रशासनिक अधिकारी व परिजनों में कार्यकम को लेकर बैनर होडिग्स, साफ सफाई सहित तमाम तैयारी होती थी। शहीद पार्क चमकाने में कर्मचारी को कोर कसर नहीं छोड़ते थे। 
लेकिन इस बार कोरोना की जंग के बीच पार्क में रखा पैटर्न टैंक को नेस्तनाबूद कर देना वाला आर सी एल गन के जीप के पहिये की हवा निकल गए, जिसपर धूल मिट्टी पट गया है। शहीद के प्रतिमा की छतरी आज तक नही लगी। पूर्व में कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव के ने पार्क के बगल में शहीद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का शुभारंभ आज तक नही हो पाया। सबसे बड़ी उम्मीदें क्षेत्र के नौजवानों की थी जो जनरल विपिन रावत ने अपने संबोधन में युवाओं के जोश की हौसला अफजाई की थी तथा आश्वासन दिए कि स्पेशल सेना में भर्ती कराई जाएंगी। 
लेकिन सबसे दुःखद स्थिति तब हुई जब शहीद की पत्नी रसूलन बीबी भी दुनिया से विदा हो गयी। उनकी कई उम्मीदों पर पानी फिर गया। रसूलन बीबी अपने जीवन काल मे शहीद दिवस पर प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री सहित देश के नामी गिरामी हस्तियों को निमंत्रण पत्र देकर आमांत्रित करती थी और जनपद के लिए तमाम सुविधाओं के लिए मांग करती रही है। फिलहाल रसूलन बीबी के न होना भी लोगों को अखर रहा है।



यह है परमवीर चक्र विजेता वीर अब्दुल हमीद की पूरी कहानी
जिले में एक मामूली परिवार में 1 जुलाई 1933 को जन्मे वीर हमीद के वीरता की गाथा को महज इन शब्दों में तो नहीं पिरो सकते। क्योंकि 1965 के युद्ध के दौरान वीर हमीद ने न सिर्फ पाकिस्तानी दुश्मनों के दांत खट्टे किए बल्कि दुश्मन देश के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए। इसी दौरान वह दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। 
परिवार वाले बताते है कि पाकिस्तान से युद्ध के दौरान घर से निकलते ही अब्दुल हमीद के साथ अपशगुन हुआ था। पिता ने रोका, लेकिन वह नहीं रुके। उन्होंने उस दौरान अपनी पत्नी से सिर्फ यही कहा था, ‘तुम बच्चों का ख्याल रखना, अल्लाह ने चाहा तो जल्द मुलाकात होगी।


गांव के बच्चों को जबरदस्ती ले जाते थे स्कूल 
शहीद वीर अब्दुल हमीद के पिता अपने क्षेत्र के पहलवानों में गिने जाते थे, लेकिन गरीबी की वजह से आजीविका के लिए वह सिलाई का काम करते थे। बेहद तंगी की हालत में पहलवान मोहम्मद उस्मान खलीफा ने अपने बड़े बेटे वीर अब्दुल हमीद को किसी तरह 5वीं तक की पढ़ाई पूरी करवाई। लोग बताते है कि अब्दुल हमीद का मन भले ही पढ़ने में न लगता हो, लेकिन स्कूल जाते समय वह गांव के अन्य बच्चों को भी पकड़कर स्कूल पहुंचाते थे। वह चाहते थे कि गांव के सभी बच्चे अच्छी शिक्षा पाए।



शहीद हुए सैनिकों के बीच घायलावस्था में मिले थे अब्दुल हमीद
अब्दुल हमीद ने 27 दिसंबर 1954 को भारतीय सेना में सैनिक के रुप में देश सेवा शुरू की। सेना में भर्ती होने के बाद सबसे पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध में अब्दुल हमीद ने अपनी वीरता दिखाई। गोलियों से घायल होने के बावजूद घुटनों और कोहनियों के बल पर चलते हुए अब्दुल ने चीन द्वारा कब्जा कर लिए गए 14-15 किलोमीटर एरिया को क्रॉस करते हुए भारत-चीन के ओरिजिनल बॉर्डर पर तिरंगा लहराया था। युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पता नहीं था कि अब्दुल हमीद जिंदा हैं। युद्ध खत्म होने के बाद जब पीछे से गई सेना की टुकड़ियों ने सैनिकों को शाम को बटोरना शुरू किया तो उन्हीं के बीच घायल हालत में अब्दुल हमीद मिले। वीरता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें नेशनल सेना मेडल दिया। 


चंद मिनटों में दुश्मन के सात पैटर्न टैंकों को किया धराशाई
थल सेना में तैनात अब्दुल हमीद जब 33 साल के थे, 1965 की भारत-पाक जंग के दौरान दुश्मन देश की फौज ने अभेद पैटर्न टैंकों के साथ 10 सितम्बर को पंजाब प्रांत के खेमकरन सेक्टर में हमला बोला। भारतीय थल सेना की चौथी बटालियन की ग्रेनेडियर यूनिट में तैनात कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद अपनी जीप में सवार दुश्मन फौज को रोकने के लिए आगे बढ़े। पैटर्न टैंकों का ग्रेनेड के जरिए सामना करना शुरु कर दिया। दुश्मन फौज हैरत में पड़ गई और भीषण गोलाबारी के बीच पलक झपकते ही अब्दुल हमीद के अचूक निशाने ने पाक सेना के पहले पैटर्न टैंक के परखच्चे उड़ा दिए।


मोर्चा संभाले अब्दुल हमीद ने पाक फौज की अग्रिम पंक्ति के सात पैटर्न टैंकों को चंद मिनटों मे ही धराशायी कर डाला। पाक फौज के पैटर्न टैंकों से निकला एक गोला अब्दुल हमीद की जीप पर आ गिरा। देश की सरहद की सुरक्षा मे तैनात गाजीपुर के इस लाल ने सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान न सिर्फ दुश्मन देश के 7 पैटर्न टैंकों के परखच्चे उड़ाकर पाक सेना के दांत खट्टे कर दिए, बल्कि वतन की रक्षा करते हुए अपनी जान की कुर्बानी दे दी। 



युध्द के दौरान छुट्टिया बिताने घर आये थे हमीद
भारत-पाक के बीच 1965 में युद्ध छिड़ा। उस समय अब्दुल हमीद छुट्टियों में घर आए हुए थे। रेडियो पर सूचना मिलते ही उन्होंने पिता से छिपाते हुए सिर्फ पत्नी रसूलन बीबी से कहा, ‘मेरी छुट्टियां खत्म हो गई हैं और मुझे वापस जाना होगा।’ उन्होंने पूरे परिवार से युद्ध शुरू होने की बात छिपाई, ताकि कोई रोक न पाए। उन्होंने चुपके से अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। अब्दुल के वापस जाने की सूचना सिर्फ उनकी पत्नी को और दोस्त बच्चा सिंह को थी। उन्होंने अपने दोस्त से कहा था कि वह भोर में चुपके से साइकिल लेकर घर के बाहर आ जाएंगे, ताकि कुछ सामान रेलवे स्टेशन तक पहुंचाया जा सके। भारत-पाक के बीच 1965 में युद्ध छिड़ा। 


नसीरुद्दीन शाह ने निभाई अब्दुल हमीद की भूमिका
शहादत के एक हफ्ते बाद 16 सितम्बर 1965 को भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च सैनिक सम्मान परमवीर चक्र देने की घोषणा की। 26 जनवरी 1966 गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वीर अब्दुल हमीद की बेवा पत्नी रसूलन बीबी को परमवीर चक्र प्रदान किया। फिल्मकार चेतन आनंद द्वारा बनाए गए टीवी सीरियल परमवीर चक्र विजेता में मशहूर कलाकार नसीरुद्दीन शाह ने अब्दुल हमीद की भूमिका निभाई। जबकि, आर्मी पोस्टल सर्विस की ओर से वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में 10 सितम्बर 1979 और 28 जनवरी 2000 को डाक टिकट जारी किए गए। 


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