ग्रामीण महिलाओं के जीवन की ‘रक्षासूत्र’ बनीं डा. संध्या, सेवा और संकल्प के साथ कर रही कार्य
जनसंदेश न्यूज़
वाराणसी। भारत में सदियों से रक्षाबंधन के पर्व को भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस त्योहार के पीछे की मूल भावना यह है कि ऐसे व्यक्ति के रक्षा की कामना के साथ उसके कलाई पर रक्षासूत्र बांधना होता है, जो हमारी रक्षा व सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहे। कोरोना के इस वैश्विक संकटकाल में हमारे देश के चिकित्सक देशवासियों के लिए कुछ ऐसी ही भूमिका निभा रहे हैं और दिन रात मरीजों की सेवा कर अपने दायित्वों का निर्वहन करने में जुटे हुए हैं।
कुछ ऐसे ही सेवाभाव और समर्पण के साथ बीएचयू की सीनियर रेजिडेंट डा. संध्या जीवन रक्षक डटी हुई है। बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान की प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. संध्या इस कोरोना संकटकाल में ना सिर्फ मरीजों की सेवा में जुटी हुई, बल्कि समय-समय पर अपने ज्ञानवर्धक लेखों के माध्यम लोगों को जागरूक करने का भी कार्य करती रहती है। जिस प्रकार रक्षाबंधन के पर्व पर भाई अपनी बहनों की रक्षा का संकल्प लेते है, उसकी प्रकार डा. संध्या ने सदैव मरीजों की सेवा और सुरक्षा का संकल्प लिया है।
लॉकडाउन के पहले इन्होंने डा. सुनील के साथ मिलकर वाराणसी के चिरईगांव ब्लाक में तीन चिकित्सा शिविर लगाये। जिसमें इन्होंने लगभग 600 ग्रामीण महिलाओं को निशुल्क चिकित्सकीय उपचार के साथ दवाईयां वितरित की। अनवरत सेवा कार्य में जुटी डा. संध्या कहती है कि जिस प्रकार एक भाई अपने बहन की रक्षा का संकल्प लेता है और बहन उसकी रक्षा के लिए उसके कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है, ठीक उसी प्रकार हम अपने मरीजों की रक्षा संकल्प लेकर कार्य कर रहे हैं।
इन्होंने महिला रोगों के रोकथाम व उसके उपचार पर 15 राष्ट्रीय व अर्न्तराष्ट्रीय पत्रिकाएं प्रकाशित करने के साथ ही कई किताबे भी लिखी है। इसके साथ ही लगभग 20 राष्ट्रीय-अर्न्तराष्ट्रीय सेमिनार में पेपर प्रेजेंट किया है। रक्षाबंधन के पर्व वें अपील करते हुए कहती है कि कोरोना एक वैश्विक संकट के रूप में उभर कर हमारे सामने आया है, इसलिए हम सबकी जिम्मेदारी बनती है कि एक जिम्मेदार भाई की तरह देश की रक्षा के लिए कोविड के नियमों का पालन करें और इस वैश्विक महामारी के खिलाफ जंग में हम चिकित्सकों का सहयोग करें।