सोनभद्र के उभ्भा गांव में शातिर नौकरशाही ने लिख दी एक और नरसंहार की पटकथा, उपजाऊ जमीनें छीनकर पीड़ितों को दिया पत्थर


उम्भा कांड की बरसी पर पढ़िए विजय विनीत की ग्राउंड रिपोर्ट


नरसंहार कांड में जान गंवाने वालों की उपजाऊ जमीनें छीनकर दे दिया पत्थर


जिस जमीन पर लोग दशकों से कर रहे थे खेती, वो छीन ली गई


सोनभद्र के अधिकारियों ने रिश्वत लेकर बो दिया नफरत का बीज


अब आपस में मरने-मारने पर उतारू नजर आ रहे हैं आदिवासी



ग्राउंड रिपोर्ट विजय विनीत
वाराणसी। पूर्वांचल के सबसे पिछड़े इलाके सोनभद्र के उभ्भा गांव में पिछले साल 17 जुलाई को जिन 11 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, उनके साथ प्रशासन ने बड़ा फरेब किया है। आरोप है कि प्रशासन ने उन आदिवासियों की जमीन छीन ली है जो दशकों से उस पर खेती कर रहे थे। जिस जमीन को आदिवासियों ने खेती लायक बनाया उसे रिश्वत लेकर दूसरों को बांट दिया गया। प्रशासन ने बड़ी चालांकी से ग्रामीणों के बीच जो नफरत का बीज बोया है उससे एक और नरसंहार की पटकथा तैयार हो गई है। जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की मनमानी के चलते आदिवासियों में जबर्दस्त तनाव बढ़ गया है। अच्छी जमीन पाने के लिए लोग अब मरने-मारने पर उतारू हो गए है। हेराफेरी इस कदर की गई है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने उभ्भा गांव में जिन आदिवासियों को जमीनों के पट्टे बांटे थे, उनमें कई के नंबर बदल दिए गए। उभ्भा नरसंहार कांड में जान गंवाने वाले कई आदिवासी परिवारों से उनकी अच्छी जमीनें छीन ली गई और अब उन्हें पथरीली जमीन पर खेती करने के लिए विवश किया जा रहा है।



उल्लेखनीय है कि बीते साल 17 जुलाई को दबंग भूमाफिया ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया ने करीब ढाई सौ लोगों को जुटाकर आदिवासियों पर हमला बोल दिया था। यज्ञदत्त ने सबसे पहले आदिवासियों की उन जमीनों ट्रैक्टर चलवाना शुरू कर दिया था जो उनकी खुद की थी। भूमिधर जमीन जबरिया जोते जाने पर गोलीबारी की घटना हुई। इस जनसंहार कांड में जहां 11  लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वहीं गंभीर रूप से घायल 21 लोग कई महीने तक जीवन-मौत से जूझते रहे।



नहीं बदला नौकरशाही का रंग-ढंग
सीएम योगी आदित्यनाथ ने दो मर्तबा उभ्भा गांव का दौरा किया। आदिवासियों को भारी-भरकम मुआवजा दिलवाया। साथ ही जमीनों के पट्टे भी। पट्टे बांटकर सीएम लखनऊ लौट गए। नरसंहार की लोमहर्षक वारदात के  बावजूद नौकरशाही का रंग-ढंग नहीं बदला। नौकरशाही का खेल देखिए। सरकार ने जैसे ही भू-माफियाओं की जमीन छीनी, वैसे ही नौकरशाही की बांछें खिल गईं। 11 सितंबर 2019 को आदिवासियों को जमीन का आवंटन किया गया। ये वो वक्त था जब तमाम गोंड आदिवासी नरसंहार कांड से उबर भी नहीं पाए थे। कुछ मुकदमे में परेशान थे तो कुछ घायलों का इलाज कराने में व्यक्त थे। इसी बीच नौकरशाही ने रिश्वत बटोरनी शुरू की और उन आदिवासियों की जमीनें दूसरों के नाम आवंटित कर दी जिन्होंने उस जमीन पर कभी खेती ही नहीं की थी। खेतों से पत्थर निकालकर जिन आदिवासियों ने जमीन को उपजाऊ बनाया था उसे राजस्व विभाग के भ्रष्ट अफसरों ने रिश्वत लेकर बंदरबांट कर दिया।



आरोप: रिश्वत लेकर बांटे गए पट्टे
नजीर देखिए। उभ्भा के रंगीलाल की नरसंहार कांड में जान जा चुकी है। इनके बेटे चंद्र बहादुर गोंड और बहू नगीना को करीब पांच बीघे जमीन का पट्टा दिया गया है। इसमें आधी जमीन तो उपजाऊ है, लेकिन आधी पत्थरों वाली जमीन का पट्टा दे दिया गया है। ये लोग कई दशक से जिस जमीन पर खेती करते आ रहे थे...जिन जमीनों से पत्थरों को निकालकर उपजाऊ बनाया था, उसे छीन लिया गया। कुछ ही उपजाऊ जमीन दी गई, बाकी पत्थर पर खेती करने के लिए दे दिया गया। इन्हीं में एक हैं श्रीमती प्रतिमा देवी। हिंसा में इन्होंने अपने पति राजेश को खो दिया है। इस विधवा की आधी उपजाऊ जमीन छीनकर दूसरों को दे दी गई। राजेश की विधवा को पत्थर वाली जमीन का आवंटन किया गया है।
उभ्भा नरसंहार कांड में सुकुवरिया देवी की भी जान गई है। इनके पति जवाहिर को जमीन ठीक मिली है, लेकिन रामचंद्र के पुत्र शिवकुमार की अच्छी जमीन छीनकर आधा पत्थर वाली दे दी गई। कुछ ऐसा ही खेल हिंसा में मारे गए रामचंद्र के पुत्र कुंवर के साथ हुआ। नरसंहार में पति को गंवाने वाली अतवरिया की खेती वाली अच्छी जमीनें रिश्वत लेकर दूसरों के हवाले कर दी गईं। मृतक अशोक की पत्नी पुष्पा देवी भी पत्थर वाली जमीन पर खेती करने के लिए तैयार नहीं हैं। हिंसा में गंभीर रूप से घायल राम सिहं के पुत्र राजेंद्र का परिवार जिस जमीन को वर्षों से जोत रहा था, वो इससे अब छीन ली गई है। अब पत्थर वाली जमीन पर खेती करने के लिए नौकरशाही दबाव बना रही है।



खुली पंचायत में नहीं बांटी जमीन
आदिवासियों के अधिवक्ता नित्यानंद द्विेदी कहते हैं कि उभ्भा में अब तक जो कुछ हुआ सब नाटक हुआ। हर दल ने आदिवासियों की भावनाओं से खेला। जिन जमीनों को आदिवासी पांच दशक से भी ज्यादा समय से जोत रहे थे। वहां खेती-किसानी कर रहे थे, नौकरशाही ने रिश्वत लेकर मनमानी की। जमीनों के पट्टे ग्राम पंचायत की खुली बैठकों में नहीं बांटे गए। ग्राम सभा को संचालित करने वाली कमेटी से जबरिया दस्तखत करा लिया गया। गांव वालों को कुछ पता ही नहीं है कि ये पट्टे किस नियम और कानून के तहत वितरित किए गए। श्री द्विेदी कहते हैं कि प्रशासन ने दूसरे नरसंहार की पटकथा लिख दी है। आदिवासी किसी भी हालत में वो जमीन छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं जिन पर वो पांच दशक से भी ज्यादा समय से खेती करते आ रहे हैं। इनके मामले कोर्ट में अब भी विचाराधान हैं। उन्होंने कहा है कि अगर उभ्भा गांव में जमीन को लेकर भविष्य में कोई विवाद होता है तो उसके लिए मौजूदा कलेक्टर और डिप्टी कलेक्टर जिम्मेदार होंगे।



जमीन की बंदरबांट में हुआ नायाब खेल
वाराणसी। सोनभद्र जिला प्रशासन ने अब तक करीब साढ़े आठ सौ बीघे जमीन का पट्टा वितरित किया है। अफसरों ने आदिवासियों को परेशान करने के लिए गजब का खेल खेला है। नरसंहार कांड के वादी है उभ्भा के लल्लू सिंह गोंड। नौकरशाही ने इनकी जिंदगी में मुसीबत का जहर घोल दिया है। इन्हें उस स्थान पर जमीन का पट्टा दिया गया है जहां भू-माफिया यज्ञदत्त भुर्तिया की जमीनें हैं। इस जमीन को पहले यज्ञदत्त की जोतता था। हाल यह है कि हिंसा कांड के वादी और अभियुक्त को प्रशासन ने आमने-सामने कर दिया है। लल्लू सिंह कहते हैं कि हमारी कोई नहीं सुन रहा है। हमारी क्या मजाल जो दबंग भूमाफिया के म्याद में खेती कर कर पाएं। जो जमीन पहले हमारे कब्जे में थी, उसे छीन लिया गया। अब कहा जा रहा है कि भूरिया की कब्जे वाली जमीन पर खेती करो। हम गरीब हैं। ऐसे में कुख्यात गुंडे से हम कैसे मुकाबला कर पाएंगे?
आदिवासियों के अधिवक्ता नित्यानंद कहते हैं कि नौकरशाही ने रिश्वत लेकर बड़े खेल खेला है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिन आदिवासियों को मौके पर पट्टे बांटे थे, उसका नंबर तक बदल दिया। मतलब पट्टे के कागजों में कुछ और मौके पर कुछ और। अधिसंख्य आदिवासियों को आज तक पट्टे वाली जमीनों के कागजात दिए ही नहीं गए। बस रिश्वतखोरी और मोल-भाव का खेल चल रहा है। यह खेल भविष्य में आदिवासियों को तबाही के रास्ते पर लेकर जाएगा। इस मामले में प्रशासन का पक्ष जाने की कोशिश की गई, लेकिन कोविड 19 में व्यस्तता का हवाला देते हुए अफसरों ने जुबान खोलने से साफ मना कर दिया। भविष्य में उनका पक्ष आएगा, तो हम उसे भी प्रकाशित किया जाएगा।



आईएएस अफसर की बीवी के नाम की जमीन जस की तस


94 बीघा कीमती और उपजाऊ जमीन पर प्रशासन ने नहीं लिया कब्जा


आईएएस भानु प्रताप शर्मा की बीवी का नाम अभी भी खतौनी में दर्ज


वाराणसी। योगी सरकार चाहे जितना भी सख्त रुख अपनाएं, सिक्का आज भी भ्रष्ट नौकरशाहों का ही चल रहा है। कुछ ऐसा ही खेल उभ्भा में खेला गया है। फर्जी संस्था बनाकर ग्राम सभा की जमीन हथियाने वाले आईएएस अधिकारियों से जिला प्रशासन ने करीब 850 बीघा जमीन तो छीन ली, लेकिन आल इंडिया बैंकिंग बोर्ड ब्यूरो के चेयरमैन भानु प्रताप शर्मा (पूर्व आईएएस) की पत्नी श्रीमती विनीता शर्मा के नाम फर्जी ढंग से दर्ज की गई जमीन जस की तस है। यह जमीन करीब 94 बीघे है। बेहद उपजाऊ इस जमीन पर उभ्भा गांव के आदिवासी दशकों से खेती किसानी कर रहे थे।



भू-माफिया माहेश्वरी प्रसाद नारायण सिन्हा फर्जी संस्था बनाकर सैकड़ों बीघे जमीन के मालिक बन बैठे थे। बाद में सिन्हा ने फर्जी ढंग से बेहद उपजाऊ 94 बीघे जमीन अपनी पत्नी पार्वती देवी के नाम की। बाद में पार्वती ने अपनी बेटी आशा मिश्रा को दे दी और फिर वही जमीन आशा ने अपनी बेटी विनीता शर्मा (आईएएस अफसर भानु प्रताप शर्मा की पत्नी) के नाम अवैध ढंग से वसीयत कर दी। सूत्र बताते हैं कि आईएएस लाबी के दबाव में जिला प्रशासन ने आज तक उस जमीन न तो अपने कब्जे में लिया और न ही उसे किसी आदिवासी को वितरित किया। खतौनी में आज भी उक्त भूखंड पर विनीता शर्मा का नाम अंकित है। इस जमीन का नामांतरण खारिज करने में सोनभद्र के मौजूदा कलेक्टर बच रहे हैं। इस वजह से इनकी भूमिका भी सवालों के घेरे में आती जा रही है।



नौकरशाही ने ठंडा कर दिया सीएम योगी का जोश: कांग्रेस


आईएएस अफसरों को बचाने के लिए फाइलों में दफन कर दी गई है एसआईटी की रिपोर्ट


प्रशासन और पुलिस के दोषी अफसरों पर आज तक नहीं हुई कार्रवाई, घिर रही सरकार


वाराणसी। उभ्भा नरसंहार कांड के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जितनी दिलचस्पी दिखाई थी, उसकी धार की नौकरशाही ने अब भोथरी कर दी है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर यूपी के ईमानदार आईपीएस अफसर जे.रविंद्र गौड़ के नेतृत्व में नरसंहार और जमीन के खेल की गहन छानबीन करने के लिए एसआईटी गठित की गई थी। एसआईटी ने कड़ी मेहनत के बाद 29 फरवरी 2020 को अपनी जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी। करीब साढ़े तीन सौ पन्नों की यह रिपोर्ट अब धूल फांक रही है। इस मामले में तत्कालीन डीएम और एसडीएम पर भूमाफिया को संरक्षण देने का खुला आरोप साबित किया गया है, लेकिन समूचे मामले पर नौकरशाही ने पर्दा डाल दिया है। अगर सरकार एसआईटी की जांच पर कार्रवाई करती है तो सूबे के करीब आधा दर्जन आईएएस अफसरों और उनके परिजनों पर गाज गिर सकती है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष लल्लू सिंह अब खुलेआम आरोप लगा रहे हैं कि पिछले साल उभ्भा में सीएम योगी ने सिर्फ ड्रामा किया। उन्होंने आदिवासियों को न्याय नहीं दिलाया। लखनऊ के हजरतगंज थाने में जिन अफसरों समेत 28 लोगों के खिलाफ रपट दर्ज की गई थी, वो भी घपले-घोटालों की भेंट चढ़ गई। लल्लू कहते हैं कि आदिवासियों को न्याय दिलाने के लिए योगी उभ्भा नहीं गए थे। उनकी नीयत साफ नहीं थी। वो जनसंहार कांड पर पर्दा डालने और आदिवासियों की भावनाओं से खेलने गए थे। उनका मकसद पूरा हो गया। आदिवासियों के न तो मुकदमें खत्म हुए और न ही दोषी जेल गए। जबकि सीएम ने उभ्भा में ऐलान किया था कि जनसंहार के जिम्मेदार लोग कतई नहीं बचेंगे। मुख्यमंत्री पर उन्होंने ऐलानिया तौर पर आरोप मढ़ा है यह सरकार सिर्फ झूठ और फरेब के दम पर चल रही है। योगी सिर्फ इसलिए उभ्भा गए क्योंकि वहां कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी जाने वाली थीं। उन्होंने कहा कि उभ्भा के आदिवासियों की लड़ाई कांग्रेस लड़ेगी। नरसंहार कांड के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई नहीं की गई तो यूपी के अलावा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश से लगायत उड़ीसा तक आदिवासियों तक भाजपा सरकार के ढोंग का प्रचार किया जाएगा। कोराना संकट के बाद खुद प्रियंका गांधी फिर उभ्भा जाएंगी और वहीं से देश के दस करोड़ आदिवासियों के लिए न्याय की लड़ाई शुरू की जाएगी।


फरार अभियुक्तों के बजाए विरोधियों को पकड़ने में पुलिस ले रही दिलचस्पी
वाराणसी। दबंग भू-माफिया यज्ञदत्त भूरिया समेत 67 लोग उभ्भा नरसंहार कांड में अभी जेल की सलाखों में हैं। इलाकाई थाना पुलिस ने अपनी विवेचना में एक अभियुक्त विवेक सिंह को बाहर कर दिया था, लेकिन कोर्ट ने उसे भी मुल्जिम मान लिया है। हालांकि वो अभी हाईकोर्ट से स्थनादेश लेकर इस मामले की पैरबी कर रहा है। पुलिस की शिथिलता का नतीजा है कि अभी भी तमाम अभियुक्त गिरफ्तार नहीं हो पाए हैं। फरार चल रहे अभियुक्तों को पकड़ने में पुलिस अब कोई दिलचस्पी नहीं ले रही है। हाल यह है कि सरकारी मशीनरी अब कांग्रेस के सियासी दबाव में है। आदिवासियों को न्याय दिलाने के बजाए इस मामले को सियासी रंग देने की कोशिश कर रही है। नौकरशाही का सारा जोर इस बात पर है कि कहीं इस मामले में उनका भांडा न फूट जाए। इसीलिए उभ्भा जा रहे कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को जहां-तहां गिरफ्तार कर लिया गया।


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