छुट्टा पशु बने अन्नदाताओं के बड़े दुश्मन

रियलिटी चेक


- सामग्री के दाम बढ़े, यूरिया का रेट बढ़ाकर घटाया वजन


- दौड़-धूपकर लोन मिलते-मिलते बीत जाता है फसल का सीजन


- छुट्टा पशुओं, प्राकृतिक आपदा से बची फसल का नहीं मिलता वाजिब मूल्य


जनसंदेश न्यूज 


वाराणसी। धैर्य, शांती, शील, क्षमा, दया, और करुणा जैसे आभूषण अन्नदाताओं के रोम-रोम में बसा रहता है। वह अन्नदाता ही हैं जो लाख कठिनाइयां सहकर भी लोगों का पेट भरने के लिए दिन-रात मेहनत करता है। वह जल्दी निराश नहीं होता। कभी प्रकृति ने उसकी फसलों नष्ट कर दिया तो कुछ ही दिन में किसान नयी ऊर्जा के साथ दोबारा काम शुरु कर देता है। अन्नादाताओं की वजह से ही सबका पेट भर रहा है और सभी जिंदा हैं। समाज के इतने महत्वपूर्ण अंग किसानों के हित में आजादी के 70 बरस बाद भी कोई ठोस नीति नहीं बनी। उन्हें वोट बैंक समझा गया। चुनाव आते ही अन्नदाताओं के हित की बात कुछ यूं शुरु हो जाती है मानो सरकार बनते ही किसानों के सभी दुख दूर हो जाएंगे। लेकिन ऐसा होता कभी नहीं। किसानों का भावनात्मक शोषण किया जाता है।


आज भी लोगों का पेट भरने वाला किसान हताश और निराश है। उनकी आमदनी दोगुनी की बात छोड़िए उन्हें घाटा उठाना पड़ रहा है। खेतों को रौंदते सांड़, बछड़े, नील गाय जैसे छुट्टा पशु किसी चक्रवात से भी ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। भाजपा सरकार ने छुट्टा पशुओं को धर-पकड़ कर उसने लिए आश्रम स्थल बनवाने की पहल तो शुरु की है लेकिन पहले के भी किसी पशु आश्रय स्थल की स्थिति की पड़ताल हुई और न ही वहां के इंतजामों को देखा गया। किसान आरोप लगाते हैं कि कई छुट्टा पशुओं के आश्रय स्थलों के कर्ताधर्ता ही छुट्टा पशुओं को छोड़ देते हैं और दोबारा उन्हें पकड़ कर कोरम पूरा करते हैं।


दूसरी ओर, किसान रामबालक कहते हैं कि खेतों को छुट्टा पशुओं और प्राकृतिक आपदा से नुकसान के बाद अवशेष उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। प्रकृति की मार झेलने के साथ ही शासन की गलत नीतियों ने किसानों का अर्थशास्त्री बिगाड़ दिया है। गत दिनों आयी बारिश से भींगे गेहूं खेतों में सड़ रहे हैं। बालियां काली हो रही हैं। कोई भी यह पूछने नहीं आया कि देखें किसान कैसे जिंदा हैं। आपदाओं ने हुए नुकसान की भरपाई भगवान भरोसे ही होती है। महकमों में उनकी गुहार अनसुनी कर दी जाती है। सब्जी वगैरह की फसल खराब होने पर सरकार मदद नहीं मिलती और किसान कर्ज में डूब जाता है।


उम्मीद की कोई एक लौ जलाए सरकार


कई मुश्किलों से दो-चार हो रहे किसानों एक बड़ी समस्या यह है कि नहरों में समय से पानी नहीं आता। नहरों का रखरखाव न होने से मेड़ टूट जाती है। फलस्वरूप खेतों में खड़ी फसल को तबाही से बचाना भारी समस्या होती है। इस प्रकार के नुकसान की भरपाई नहीं होती। किसान सवाल उठा रहे हैं कि देश का लाखों, हजारों करोड़ रुपये टकारने वाले घोटालेबाज साफ बच जा रहे हैं और कर्ज के बोझ से दबे अन्नदाताओं को छूट नहीं दी जा रही है। बैंकों के हजारों करोड़ रुपये एनपीए हो गये लेकिन किसानों की कर्ज माफी की बात पर अर्थशास्त्री से लेकर बैंक वाले भी चिल्लाने लगते हैं। किसानों को महज एक मजदूर के नजरिये से देखा जा रहा है। जबकि कर्ज माफी से किसानों को बड़ी राहत मिले को अन्नदाता खुकुशी न करे। किसान गजानन यादव कहते हैं कि सूरज जैसी रोशनी न सही लेकिन अन्नदाताओं के जीने के लिए सरकार कोई एक लौ तो जलने दे। अन्नदाताओं के लिए ठोस नीति बने। किसान आयोग का गठन हो।


 


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