कोरोना की मार, फीकी हुई सेवई की मिठास, ईद की स्पेशल किमामी सेवइयां बनाते हैं हिन्दू
कोरोना ने दिया लाखों का झटका, निर्माता बेबस
जनसंदेश न्यूज
वाराणसी। रमजान के पाक महीने में मुस्लिम परिवारों में उपयोग की जाने वाली सेवई हिन्दू परिवार बनाते हैं। मशीन से ही नहीं हाथों से संवरने वाली बनारसी सेवई की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं खाड़ी देशों और विदेशों तक होती है। लेकिन अबकी वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन की मार ने सेवई की मिठास फीकी कर दी है। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल ईद पर सेवई की डिमांड को पूरा करने वाले निर्माताओं को कोरोना ने लाखों का ऐसा झटका दिया है कि वे बेबस नजर आ रहे हैं। अब लॉकडाउन फोर में कुछ छूट मिली है, लेकिन कारोबार में रौनक नहीं है। बस फुटकर कारोबारी उतना ही माल खरीद रहे हैं, जितना बिक जाए।
सेवई निर्माताओं की मानें तो रमजान के पाक माह में दुबई, ईरान, ईराक, तेहरान, सउदी अरब, शरजाह आदि खाड़ी देशों के रोजा इफ्तार दावतखाने में बनारसी सेवई की कटोरी भी सजती रही है। लिहाजा, बड़ी मात्रा में सेवई खाड़ी देशों को निर्यात की जाती रही है। खाड़ी देशों में कीमामी (छत्ता), लछ्छा (डंडा) एवं पराठा सेवई की सर्वाधिक डिमांड होती रही है। इतना ही नहीं, विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के नागरिक भी ऑर्डर देकर इसे मंगाते रहे हैं। लेकिन इस बार वैश्विक महामारी कोरोना की ऐसी मार पड़ी कि सेवई उद्योग सन्नाटे में हैं। सेवई के दर्जनों कारखाने बंद पड़े हैं। निर्माताओं के साथ ही कारीगरों का परिवार आर्थिक संकट से जूझ रहा है। इनका कहना है कि सरकार ने कुटीर उद्योग के रूप में प्रसिद्ध सेवई के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया।
प्रमुख निर्माता रविशंकर गुप्ता कहते हैं, ‘कोरोना संक्रमण की ऐसी मार पड़ी कि सेवई निर्माण लगभग ठप सा पड़ गया। बंदी के दौरान लोकल कारीगरों का सहयोग मिला। लेकिन डर था कि लॉकडाउन नहीं खुला तो तैयार माल का क्या होगा? इसलिए, महज 25 प्रतिशत ही प्रोडक्शन हो पाया। उनका कहना है कि फरवरी के पूर्व मैदा का भाव काफी तेज था। सो, माल तैयार नहीं किया गया। जब मैदा सस्ता हुआ और माल तैयार करने का वक्त आया तो लॉकडाउन हो गया। बाहरी कारीगर नहीं आ पाए। कोरोना की मार के चलते सेवई निर्माताओं की कमर ही टूट गयी। बताते हैं कि सेवई निर्माता साल भर निर्माण करते हैं और रमजान के पाक महीने की बिक्री से ही उनके घर का खर्च चलता है। लेकिन अबकी वैश्विक महामारी की ऐसी मार पड़ी है कि घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया है। क्योंकि, महज एक दर्जन कारखानों में ही सेवई का निर्माण हुआ। बाकी कारखाने बंद ही रहे। अबकी कीमामी सेवई 40 से 60 रुपये प्रति किलो के भाव बिकी। ऐसे में जो कारखाने चले, उनका खर्च निकालना मुश्किल हो गया है।’
सेवई निर्माता सचिन मौर्य बताते हैं, ‘ईद के लिए बनाई जाने वाली स्पेशल बनारसी कीमामी सेवई को हिन्दू परिवार ही तैयार करते हैं, लेकिन इस बार कोरोना महामारी की मार से सेवइयों का कारोबार भी फीका सा पड़ गया। कोरोना के चलते ऑर्डर घटकर 25 से 30 प्रतिशत ही मिला। क्योंकि अन्य राज्यों से डर के मारे कई कारोबारी आए नही और न ही फोन से ही किसी ने ऑर्डर दिया। आर्डर देते और माल तैयार हो जाता तो ले जाने का झंझट होता। लिहाजा, आसपास के जिलों के ही फुटकर कारोबारियों ने सम्पर्क किया और खुद ही अपने वाहन से माल ले गए।’ सेवई निर्माताओं की मानें तो सेमी सेंवई (दूधफेनी) के अच्छे कारीगर कानपुर एवं बिहार से बुलाये जाते हैं जो 1000-1200 रुपये प्रति कुंतल मजदूरी पर माल तैयार करते हैं। हस्तनिर्मित दूधफेनी का स्वाद लाजवाब होता है। मुस्लिम समुदाय में कीमामी (छत्ता), लछ्छा (डंडा) एवं पराठा सेवई की जबर्दस्त मांग होती है। पराठा सेंवई का निर्माण मदनपुरा एवं बड़ी बाजार इलाके में होती है। सेमी सेवई (दूधफेनी) एक पखवारे से अधिक समय तक टिक नहीं सकती। लिहाजा, इसका निर्माण उतना ही होता है जितना बाजार में खप जाए। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते बाहर से कारीगर आ नहीं पाए। सो, घर के सदस्य ही इसके निर्माण में लगे रहे। बाजार खुल गया है, सो बिक्री हो रही है। लेकिन करीब दो महीने के लॉकडाउन ने सेवई निर्माताओं की ऐसी कमर तोड़ी है कि घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया है।
सेवई मंडी नाम से मशहूर है एक मोहल्ला
बनारसी सेवई और बनारसी सेमी सेवई (दूधफेनी) भदऊ चुंगी क्षेत्र में बनायी जाती है। बड़े पैमाने पर उत्पादन होने से एक मोहल्ला सेवई मंडी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। यहां घर-घर सेवई एवं सेमी सेवई का निर्माण होता है। खास बात यह कि रमजान के पाक महीने में मुस्लिम परिवारों में घर-घर इस्तेमाल की जाने वाली सेवई का निर्माण हिन्दू कारीगर ही करते हैं। ईद की तैयारियों के लिए डेढ़-दो माह पूर्व से ही कारीगर लगा दिये जाते थे, जबकि बाकी दिनों में परिवार का प्रत्येक सदस्य इसके निर्माण में लगा रहता है। होली बाद से सेवई का उत्पादन शुरू होकर बकरीद तक चलता है। लेकिन इस बार सेवई मंडी में गजब का सन्नाटा पसरा हुआ है। वजह, कोरोना संक्रमण की जबर्दस्त मार जो पड़ी है। लॉकडाउन के चलते उत्पादन ठप पड़ गया था। सिर्फ परिवार के सदस्य ही इस आस में सेवई के निर्माण में लगे हुए थे कि शायद ईद आते-आते बाजार खुल जाए। अब जबकि बाजार खुला तो आर्थिक तंगी के चलते खरीदार उतनी मात्रा में खरीदारी नहीं कर रहे हैं, जितनी करते आए थे। विदेशों से ऑर्डर तो मिला नहीं, क्योंकि हवाई मार्ग बंद है। कोरोना की मार के चलते लगभग 50 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ।
एक नजर इधर भी
कारखानों की संख्या है 60 से अधिक।
सेंवई का रोजाना उत्पादन-आम दिनों में 800 कुंतल तो त्यौहार पर 1500 कुंतल
इनकी होती है जबर्दस्त डिमांड
बनारसी कीमामी सेवई, बनारसी छड़ सेवई, मशीन मेड सेमी सेवई, हाथ लच्छा दूधफेनी, भूनी कीमामी सेवई, भूनी छड़ सेवई, पराठा सेवई आदि।